राष्ट्रपति चुनाव: विपक्ष उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को नही मिल रहा पार्टी का समर्थन, बीजेपी को हो सकता है फायदा
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 14जुलाई। केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद अक्सर बीजेपी में तो एकता नजर आती है लेकिन विपक्षी दल में एकता नजर नही आती है। उल्टा विपक्षी दलों में आए दिन अन्तर कलह सामने आती रहती है और एक के बाद एक राज्यों में विपक्षी दलों की कलह जनता के सामने आती रहती है।
लोकसभा चुनाव में भी विपक्षी दलों की एकता नजर नहीं आई और राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा है। राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के सामने विपक्ष ने यशवंत सिन्हा के तौर अपना उम्मीदवार तो उतारा है लेकिन समर्थन को लेकर कई दल पीछे हट रहे हैं। पहले उम्मीदवार चयन को लेकर विपक्ष की ओर से जो नाम सुझाए गए उनमें से बारी-बारी से सबने असमर्थता जता दी। आखिरकार यशवंत सिन्हा के नाम पर रजामंदी हुई। लेकिन जैसे- जैसे चुनाव की तारीख करीब आ रही है उनका समर्थन बढ़ने की बजाय घटता ही जा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह खड़ा हो गया है कि राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्षी एकता में जो फूट पड़ी है उसके बाद क्या विपक्ष उपराष्ट्रपति के चुनाव में उम्मीदवार खड़ा करेगा। या बीजेपी को इस चुनाव में वॉकओवर मिलेगा।
राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की ओर से पहले कोई उम्मीदवार बनने को राजी नहीं हो रहा था। एक- एक करके जो नाम सामने आ रहे थे वो भी मना करते जा रहे थे। आखिरकार यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया। आधी लड़ाई विपक्ष नाम तय करने में ही हार चुका था लेकिन आगे ऐसा होगा इसकी उम्मीद कम की गई थी। वहीं बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को उम्मीदवार बनाकर विपक्ष की लड़ाई को और भी कमजोर कर दिया। यूपी समेत कई राज्यों से पहले छोटे दलों ने यशवंत सिन्हा की बजाय द्रौपदी मुर्मू को समर्थन देने की बात कही। इसमें अधिकांश ऐसे दल हैं जो राज्यों में बीजेपी के साथ न होकर विपक्ष के साथ हैं। हालांकि विपक्ष को बड़ा झटका कल लगा जब उद्धव ठाकरे की ओर से एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन का ऐलान किया गया।
वहीं झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन भी एनडीए उम्मीदवार का विरोध नहीं कर पा रहे हैं। सबसे हैरानी तो उस वक्त हुई जब यशवंत सिन्हा को प. बंगाल में प्रचार करने से ही मना कर दिया गया। जबकि ममता बनर्जी ने ही राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष की अगुवाई की थी। ममता बनर्जी ने कहा कि बीजेपी ने यदि अपने राष्ट्रपति उम्मीदवार की घोषणा पहले कर दी होती तो उस पर सर्वसम्मति बन सकती थी। अब वो मजबूर हैं कि चाहकर भी द्रौपदी मुर्मू का समर्थन नहीं कर पाएंगी। मजबूरी सिर्फ ममता बनर्जी के सामने नहीं और भी कई दल इसमें शामिल हैं।
वहीं राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की स्थिति को देखकर उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए मंथन जारी है। कांग्रेस की ओर से इस बार विपक्षी दलों को एकजुट करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस की कोशिश है कि राष्ट्रपति चुनाव जैसा हाल उपराष्ट्रपति के चुनाव में न हो। कुछ दिनों पहले ऐसी चर्चा थी कि विपक्ष की ओर से साउथ का कोई कैंडिडेट बनाया जा सकता है। हालांकि यह चर्चा तब थी जब शिवसेना और दूसरे दल तब तक विपक्ष के साथ थे। राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले उपराष्ट्रपति का चुनाव विपक्ष के लिए कहीं अधिक मुश्किल है।