संस्कृति : लोकमंथन (5) मुख्य अतिथि माननीय उपराष्ट्रपति का संबोधन
भारत को अपनी वाक परंपरा और श्रुति परंपरा पर शोध करने की आवश्यकता है- उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़
पार्थसारथि थपलियाल।
( हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। इस दौरान बहुत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित की गई। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)
22 सितंबर 2022 को लोकमंथन समारोह का मुख्य आयोजन था उद्घाटन सत्र। इस सत्र के मुख्य अतिथि थे भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़। अपना संबोधन शुरू करने से पहले उन्होंने प्रज्ञा प्रवाह द्वारा प्रकाशित पुस्तक “लोक परम्परा-2022” और असम के मुख्यमंत्री डॉ. हिमंता बिस्वा सरमा द्वारा लिखित पुस्तक “In Pursuit of a Dream” का विमोचन किया।
माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने प्रज्ञा प्रवाह की इस बात के लिए प्रशंसा की कि उसनें देशभर में छुपी हुई लोक परम्पराओं को लोकमंथन के इस मंच पर एक साथ लाकर उन्हें उजागर करने का प्रयास किया। सनातन संस्कृति इसलिए पल्लवित होती रही क्योंकि वह परस्पर आदान प्रदान करती रही है। लोकमंथन का थीम लोक परम्पराएं है। इस समागम में भारत के कोने कोने से परम्परराओं और कलाओं के जानकार बुद्धिशील महानुभाव और परम्परराओं/कलाओं को व्यवहार रूप में प्रस्तुत करनेवाले कलाकार एक मंच पर हैं। ऐसी स्थिति में वैचारिक मंथन भी उच्चकोटि का होगा इसमें कोई संशय नही।
भारत में विभिन्न विषयों और ज्ञान परम्पराओं में जहां द्विविधा लगी वही संवाद को एक निराकरण उपकरण के रूप में अपनाया गया। बृहदारण्यक उपनिषद में महर्षि याज्ञवल्क्य और विदुषी गार्गी के मध्य आत्मा को लेकर जो शास्त्रार्थ हुआ है वह संवाद शैली का एक अनुपम उदाहरण है। सौम्यता से प्रश्न पूछे जाते हैं सरलभाव से उत्तर दिए जाते रहे हैं। अंत मे विदुषी गार्गी विनय पूर्वक महर्षि याज्ञवल्क्य के सामने नतमस्तक हो जाती है। महर्षि भी गार्गी के ज्ञान की प्रशंसा करते हैं। यह है संवाद की परंपरा जिसमें विवाद न हो। (पाठक इस प्रसंग को याज्ञवल्क्य और गार्गी संवाद शीर्षक से गूगल में ढूंढ सकते हैं। बहुत रोचक प्रश्नोत्तर हैं)
उपराष्ट्रपति श्री धनखड़ नें इस दौर में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया में डिबेट्स में जिस तरह की सामग्री देखने सुनने को मिलती है उससे संवाद भावना खत्म होती प्रतीत होती है। अनेक डिबेट्स ऐसी होती हैं जिससे सामाजिक समरसता दुष्प्रभावित हो सकती है। मीडिया में सामाजिक मूल्यों का अभाव होता जा रहा है। हमें अपने सामाजिक मूल्यों और राष्ट्रीय कर्तव्यों का सम्मान करना चाहिए। सामाजिक मान्यताओं को भी सम्मान मिलना चाहिए।
बुद्धिशील व्यक्ति यदि चुप रहता है तो उससे समाज को बहुत बड़ी हानि होती है। बुद्धिशील वर्ग को चाहिए कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए समाज मे जागृति लाये। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक बहुत बड़ा उपहार है लेकिन इसका दुरुपयोग उचित नही है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे लोकतंत्र का अनुपम उपहार है। हमें इसके महत्व को समझने की आवश्यकता है। मीडिया को पहल करनी चाहिए कि वह समाज के कमजोर वर्ग की आवाज बने। अपने प्रसारणों में उन लोगों की समस्याओं और जीवन की कठिनाइयों को उचित स्थान दे। सामाजिक लोकाचार एक महत्वपूर्ण विषय है,। हमारी लोक मान्यताएं, लोक परम्पराएं और राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर सार्थक कार्यक्रम करना मीडिया का दायित्व है। हमें सुनना भी आना चाहिए और समझना भी आना चाहिए।
उन्होंने कहा कि लोकमंथन गोहाटी हमारी लोकपरंपराओं को लोक कल्याण की दृष्टि से मथेगा, इसमें से जो सांस्कृतिक अमृत निकलेगा वह हमारी लोक परम्पराओं को समृद्ध करेगा जिससे भारत की लोकमंगल की कामना पूर्ण होगी। लोका समस्ता सुखिनो भवन्तु।।