राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी
ललितासहस्रनाम में हमको भारत की उपासनाओं का इतिहास दिख सकता है । योगदर्शन है , तो कुंडलिनी और षट्चक्र को लेकर कितने ही सूत्र ललितासहस्रनाम में यत्र-तत्र बिखरे हुए हैं , इतना ही नहीं याकिनी साकिनी आदि योगिनियों की परंपरा भी वहाँ है । अब आप वाक् को देखें तो परा पश्यन्ती मध्यमा वैखरी का इतना विस्तार है ! अब आप वर्ण ,प्रकाश या आभा को लें तो कहीं सिन्दूरारुणी आभा है तो कहीं तडिल्लता समरुचि: हैं । अद्वैत-दर्शन तो मानो ललितासहस्रनाम का आधारभूत तत्त्वबोध है । संपूर्णता का सिद्धान्त ललितासहस्रनाम की गहराइयों में पेंठा हुआ है । शिवाशिव की रह:केलि के इतने सम्मोहक चित्र हैं ! ललिता कामेश्वरी है , राज्य तो ललिता का ही है , काम वहाँ चाकर है । ललित शब्द ही रति का वाचक है , ललितं रति चेष्टितम् । सृष्टि के आविर्भाव और तिरोभाव के सिद्धान्त हैं , ऐसे अद्भुत बिंब ललितासहस्रनाम में हैं >> महातांडवसाक्षिणी । ललितासहस्रनाम में वैष्णव-सिद्धान्त भी हैं और बौद्ध-सिद्धान्त भी हैं । शिवशक्त्यैक-रूपिणी हैं तो शैव-सिद्धान्त की पीठिका ललितासहस्रनाम में है ही । वैदिक-सिद्धान्त हैं तो आगम भी ललितासहस्रनाम में उपस्थित हैं ही ।
✍🏻राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी
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