भारत की अतार्किक और अन्यायपूर्ण न्यायव्यवस्था और बेबस, निरीह और लाचार हिंदू जनता

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

भारत की न्यायव्यवस्था बिल्कुल अंधी, बहरी, निर्लज्ज, अतार्किक, गरीब व जनविरोधी बन चुकी है और उसके न्यायाधीश भी वैसे ही बन चुके हैं जो राक्षसी, हिंसक और भयानक हिंदू हत्यारी और क्रिप्टो मुस्लिम औरत ममता बनर्जी के द्वारा पश्चिमी बंगाल के ग्राम पंचायत चुनावों में किए जा रहे मौत के भयानकतम तांडव को देख कर भी चुप हैं और पता नहीं क्यों हर मामले में टांग अड़ाने वाले मीडिया, वकीलों, तथाकथित बुद्धिजीवियों और भाजपा सहित अन्य समस्त विपक्षी दलों में भी स्मशान का सा सन्नाटा पसरा हुआ है।

वर्ष २०२१ में दिल्ली में अवैधानिक तरीके से इकट्ठा हुए किसान उपद्रवियों द्वारा 2 अक्टूबर, 2021 को उत्तर प्रदेश में हिंसा फैलाने की धमकी के बाद लखीमपुर खीरी, उतर प्रदेश में इन तथाकथित किसानों ने भयानक दंगा किया और 3 फर्जी किसानों की मौत हो गई तो सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस रमन्ना स्वयं आ गया लखीमपुर खीरी में और स्वतः संज्ञान लेकर मोदी के मंत्री के बेटे को गिरफ्तार करवा दिया।

उसके 5 महीने पहले ममता बनर्जी ने विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस की भ्रष्ट तरीकों से जीत होने के बाद उसके हजारों पालतू गुंडो द्वारा 2 मई, 2021 और उसके बाद भयानक हिंसा और खुल्लमखुल्ला हिंदुओं की हत्याएं हुए, हजारों हिंदुओं के घर जलाए गए, हजारों हिंदू स्त्रियों के बलात्कार हुए और हजारों हिन्दुओं को बंगाल छोड़कर भागना पड़ा पर उसी स्वयंभू न्यायरक्षक रमन्ना ने तब कोई स्वतः संज्ञान नहीं लिया और न ही उसके बाद भी किसी अन्य हिंसा पर ऐसा त्वरित संज्ञान नहीं लिया जैसा कि लखीमपुर खीरी में लिया था जो साफ़ दिखाता है कि वह सब एकतरफा कार्रवाई केवल जानबूझकर और षड्यंत्रपूर्वक यूपी में योगी सरकार और केंद्र में मोदी सरकार के विरुद्ध थी और एक केंद्रीय मंत्री और उसके बेटे को फंसाने के लिए थी और आश्चर्य की बात है कि भारत में इस अन्यायपालिका को न्यायपालिका कहा जाता है।

अभी अभी ग्राम पंचायत चुनावों में ममता बनर्जी ने पूरे बंगाल में भयानक हिंसा और मौत का तांडव किया और करीब ३०० निर्दोष हिन्दुओं की बलि चढ़ा दी। हिंदू चीखते रहे, मरते रहे और खुल्लमखुल्ला सड़कों पर रक्त बहता रहा। राज्यपाल शांति की अपील करते रहे और बीएसएफ जैसी केंद्रीय संस्थाएं भी कुछ करने में असमर्थ रही क्योंकि उन्हें वास्तविक संवेदनशील क्षेत्रों की जानकारी ही नहीं दी गई थी।

भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त अपने बंगाल के राज्य चुनाव आयुक्त एकपक्षीय, पक्षपाती और बदमाश राजीव सिन्हा की तरफ से आंखें मूंद कर बैठा है जो बड़ी बेशर्मी से कह रहा है कि राज्य में कानून व्यवस्था राज्य पुलिस का मामला है, चुनाव आयोग का काम सिर्फ चुनाव प्रबंधन का है और खुद ने ही चुनाव प्रबंधन को जानबूझकर फेल कर दिया और हिंदूद्रोही, देशद्रोही राक्षसी ममता बनर्जी के साथ षड्यंत्रपूर्वक मिलीभगत कर भयानक अराजकता फैलाने में यथासंभव सहयोग किया है । चुनाव प्रबंधन अगर सही में राजीव सिन्हा ने किया होता तो वह कोलकाता हाई कोर्ट के केंद्रीय बलों की नियुक्ति आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट नहीं जाता और आश्चर्यजनक रूप से ममता के साथ याचिकाकर्ता नहीं बनता। हालांकि इस सारे घटनाक्रम में और नीच, राक्षसी औरत ममता बनर्जी के मामले में केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की भयानक नपुंसकता भी अत्यधिक आश्चर्यजनक और निंदनीय है और इसका भयानक परिणाम वह आज तक भुगतती आ रही है और आगे भी भुगतती रहेगी और अगर इसी तरह नपुंसक बनी रही तो बंगाल में शासन करने का सपना कभी पूरा नहीं कर पायेगी और यह नीच राक्षसी औरत ममता बंगाल को अपनी घोषणा के अनुसार निश्चित रूप से मुस्लिम राष्ट्र बना देगी। क्यों नहीं केंद्र सरकार ऐसी भयानकतम परिस्थितियों में राष्ट्रपति शासन लगाती? पर संभवतः उसे इस पक्षपाती और अन्यायपूर्ण सुप्रीम कोर्ट का डर लगता होगा कि वह तुरंत ही उसके निर्णय को पलट देगा पर उसको उचित काम के लिए इन स्वेच्छाचारी और अन्यायपूर्ण जजों से अनावश्यक डरना नहीं चाहिए और इनके सामने आत्मसमर्पण नहीं करके वीरतापूर्ण तरीके से इनका सामना करना चाहिए जैसे नेहरू और इंदिरा ने किया था और इनको काबू में रखा था। इंदिरा गांधी ने अपने कार्यकाल में सतावन बार राज्यों में बिना पर्याप्त कारणों के भी राष्ट्रपति शासन लगाया था और इसी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ भी नहीं किया था क्योंकि वह इंदिरा के सामने दुम दबाकर रहता था। अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस होते ही केंद्र की कांग्रेस की नरसिंहा राव सरकार ने उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार को पदच्युत कर दिया था परन्तु उसके साथ ही राजस्थान व दो अन्य राज्यों यानी कुल चार भाजपा शासित राज्यों जिनका इस मामले से कोई दूर दूर तक भी संबंध नहीं था उनको भी सता से हटा दिया था पर इस सुप्रीम कोर्ट या किसी हाई कोर्ट ने बिल्कुल अपनी पूंछ भी नहीं हिलाई थी।

लेकिन एक प्रश्न बड़ा स्पष्ट है सुप्रीम कोर्ट से कि क्या न्यायपालिका नेत्रहीन होने के साथ साथ संवेदनहीन भी हो चुकी है और क्या आप अदालत में बैठे न्यायाधीश अंधे बहरे और इतने निर्लज्ज हो चुके हो कि एक राज्य में लगी भयानक आग भी नहीं देख सकते ? कल यदि केंद्र सरकार ममता सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा देती है तो मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ तुरंत एक नई संविधान पीठ बना कर बैठ जाएगा और अतार्किक रूप से उस निर्णय को बदल देगा क्योंकि उसे तो मोदी के विरुद्ध चलना है।

सुप्रीम कोर्ट के कई जज विगत में ममता से संबंधित सुनवाई से खुद को अलग कर चुके हैं। शायद डरते हैं कि ममता के गुंडे उन्हें दिल्ली के महलों से ही न उठा ले जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने ममता के भ्रष्टाचार पर कल पर्दा डालने की कोशिश की। कोलकाता हाई कोर्ट के जस्टिस गंगोपाध्याय का बंगाल सरकार द्वारा 32 हजार शिक्षकों की भ्रष्टाचार से की गई नियुक्ति को रद्द करने के निर्णय को निरस्त कर दिया गया। और ऐसा कोई न्याय की दृष्टि से नहीं बल्कि अपने ही साथी जज से बदला लेने की भावना से यह कार्रवाई की गई। शायद इसलिए कि न्यायमूर्ति श्री गंगोपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट के व्यवहार के लिए व्यंग्य में कहा था : “सुप्रीम कोर्ट जुग जुग जियो।”

अपने आप को कानून बनाने की शक्ति रखने का दावा करने वाले सुप्रीम कोर्ट को चाहिए कि इस बारे में भी दिशा निर्देश बनाए कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेने का उचित और न्यायसंगत पैमाना क्या होगा ? यह उठाओ और चुनो की मनमानी नीति या कहें अनीति बिल्कुल भी नहीं चलनी चाहिए।

पिछले दिनों 23 जून को जो सतरह विपक्षी दल मोदी को हटाने हेतु महागठबंधन बनाने के लिए पटना में एकत्रित हुए थे उनके एक भी नेता ने बंगाल हिंसा पर एक शब्द भी नहीं बोला है जैसे पूरे गठबंधन में ही स्मशान जैसा सन्नाटा पसरा हुआ है शायद राहुल गांधी के लिए तो बंगाल में कल उसकी प्रिय “मुहब्बत की दुकान” खुली थी।महाराष्ट्र का महाभ्रष्ट शरद पवार कह रहा है कि भाजपा विपक्ष को कमजोर करना चाहती है यानी आप सब महाठग और महाभ्रष्ट विपक्षी दल इकट्ठे होकर मोदी की जड़ उखाड़ने की कोशिश करो और वह तुम जोकरों को मजबूत करने की कोशिश करे ? क्या अपने को महापंडित और उसको बच्चा या मूर्ख समझ रखा है? वह तुम्हारी जोकर मंडली से ज्यादा समझदार है।

अभी अभी भयानक बदमाश, अपराधी और षड्यंत्रकारी औरत तीस्ता सीतलवाड़ को जमानत देने के मामले में गुजरात हाईकोर्ट द्वारा स्पष्ट रूप से इन्कार करने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट द्वारा छुट्टी के दिन और रात्रि को ग्यारह बजे कोर्ट के दरवाजे खोलकर जमानत देने की एकतरफा, पक्षपाती और अन्यायपूर्ण कारवाई को पूरे विश्व ने देखा है और इस पर थू थू की है और इस अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण घटना से राष्ट्र और भारत के पूरे सिस्टम की विश्व में भयंकर बदनामी हुई है।

सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों के भयानक पक्षपात और अकर्मण्यता के लिए उन्हें। बिल्कुल क्षमा नहीं किया जा सकता! अब समय आ चुका है कि जनता को इस अंधी, बहरी और अन्यायपूर्ण न्यायपालिका के विरुद्ध उठ खड़ा होना चाहिए और सबको एक समान न्याय मिलने की आवाज उठानी चाहिए।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.