आद्य गुरु शंकराचार्य की 108 फ़ीट ऊंची अदभुत प्रतिमा का लोकार्पण, धरा से नभ तक…”अद्वेत”
ज्योतिर्लिंग नगरी ओंकारेश्वर में सीएम शिवराज ने किया आचार्य शंकर की अलौकिक मूर्ति का अनावरण, अद्वेत लोक का भूमिपूजन भी
नितिनमोहन शर्मा।
धन्य हो गई धरा। धन्य धन्य हुआ नील गगन। धन्य हुई मांधाता नगरी। धन्य धन्य हुई मेकल सुता माई नर्मदा। धन्य हुआ ओंकार पर्वत। धन्य धन्य हई ज्योतिर्लिंग नगरी। धन्य हुई निमाड़ की धरती। धन्य धन्य हुआ समूचा राज्य। धन्य धन्य हुए भाग हमारे। आद्य गुरु शंकराचार्य जो हमारे अंचल में पधारे। अद्वेतवाद का शंखनाद करते वे ओंकार पर्वत के शिखर पर विराज गए। अपने “शंकर” को अपने बीच फिर से पाकर मैय्या रेवा का तो कहना ही क्या? इठलाती, बलखाती, लाड़ लढाती “शंकर” के चरण पखारती पुण्य सलिला माँ नर्मदा स्वयम को भी गौरवान्वित महसूस कर रही है। मान्धाता नरेश के आराध्य भगवान ओंकारनाथ और भगवान ममलेश्वर भी अपने आराधक को अपने शीश पर विराजमान देख आल्हादित हैं। जूना पीठाधीश्वर की अगुवाई, पावन सन्तो, महंतो, महामंडलेश्वर का सानिध्य और प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह की जजमानी में ये इतिहास रच गया। आद्य शंकराचार्य की 108 फ़ीट ऊंची भव्य एवं अलौकिक प्रतिमा का लोकार्पण जो हो गया। समूचे संसार मे अद्वेतवाद का दर्शन कराती ये प्रतिमा अब मध्यप्रदेश के साथ साथ, देश की धरोहर हो गई। अद्वेतलोक का ये पहला चरण है, जो गुरु चरण में नतमस्तक शिवराज सिंह के शीश के साथ पूर्ण हुआ। 2 हजार करोड़ का ये सम्पूर्ण लोक अभी औऱ भी भव्य व अलौकिक रूप लेगा।
सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोने वाले आदि गुरू शंकराचार्य की ज्ञान भूमि ओंकारेश्वर में उनकी 108 फीट ऊंची बहुधातु से निर्मित प्रतिमा के अनावरण के साथ-साथ एकात्म धाम का शिलान्यास दिव्य और भव्य रूप से सम्पन्न हुआ। देशभर से आए प्रमुख संतों की उपस्थिति में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रतिमा का अनावरण करते हुए आदि गुरु शंकराचार्य जी के चरणों में साष्टांग नमन किया और मध्यप्रदेश की धरा को कृतार्थ करने की प्रार्थना के साथ ये कामना भी की कि अद्वैत का ज्ञान आने वाली पीढ़ियों को भी मिलता रहे। सीएम ने कहा कि शंकराचार्य जी ने सांस्कृतिक रूप से देश को जोड़ने का कार्य किया। उनकी जन्म स्थली केरल थी, लेकन उन्होंने जंगलों, पहाड़ों से यात्रा करते हुए ओंकारेश्वर में ज्ञान प्राप्त किया। यहाँ से ज्ञान प्राप्त कर वे काशी की ओर आगे बढ़े। उनके अद्वैत वेदांत के कारण भारत एक है शंकराचार्यजी ने देश के चार कोनों में चार मठों की स्थापना की। स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, तुलसी दास और कबीर दास जी सहित प्रमुख संतों ने आदि गुरू शंकराचार्य के अद्वैत ज्ञान को अपनाया है। आने वाली पीढ़ियों को भी अद्वैत ज्ञान मिलता रहे, इसी उद्देश्य से उनकी स्मृति में एकात्म धाम बनाया जा रहा है।
शिवराज ने विधि विधान का रखा पूरा ध्यान
एकात्मता की मूर्ति के अनावरण के लिए 11 सितंबर से देशभर के प्रमुख संतों द्वारा अनुष्ठान किए जा रहे थे। 11 से 19 सितंबर तक मंधाता पर्वत पर उत्तरकाशी के स्वामी ब्रह्मेन्द्रानंद तथा 32 सन्यासियों द्वारा प्रस्थानत्रय भाष्य पारायण किया गया। 15 से 19 सितंबर तक, मंधाता पर्वत पर, दक्षिणाम्नाय श्रंगेरी शारदापीठ के मार्गदर्शन में महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद प्रतिष्ठान द्वारा 300 वैदिक आर्चकों द्वारा पूजन तथा 21 कुण्डीय हवन हुआ। 18 सितंबर को सिद्धवरकूट पर ब्रह्मोत्सव- संत मनीषियों एवं विशिष्टजनों का समागम हुआ। 21 सितंबर को दक्षिणाम्नाय श्रंगेरी शारदापीठ के मार्गदर्शन में महर्षि सांदीपनि राष्ट्रीय वेद प्रतिष्ठान, उज्जैन, आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास के द्वारा एकात्मता की मूर्ति का अनावरण एवं अद्वैत लोक का भूमि एवं शिला पूजन किया गया।
केरल की परम्परा से स्वागत
संतगणों और मुख्यमंत्री का कलाकारों द्वारा केरल की पारंपरिक पद्धति अनुसार स्वागत किया गया।इस अवसर पर मशैव परम्परा से जुड़े नृत्यों की प्रस्तुतियों भी हुई। 101 बटुकों द्वारा वेदोच्चार शंखनाद किया गया। सिद्धवरकूट में “बह्मोत्सव” का आयोजन किया गया। वेदोच्चार एवं शिवोहम-आचार्य शंकर के स्तोत्रों पर एकाग्र समवेत नृत्य प्रस्तुति दी गईं। ‘एकात्मता की यात्रा’ फिल्म का प्रदर्शन भी हुआ।
शंकराचार्यो के आये लाइव शुभकामना संदेश
प्रमुख संतों एवं मठों द्वारा “बह्मोत्सव में लाइव शुभकामना संदेश भी दिए गए जिनमें स्वामी विधुशेखर सरस्वती जी महाराज, जगद्गुरू शंकराचार्य, शारदापीठ, श्रंगेरी, परमपूज्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज, जगद्गुरू शंकराचार्य, शारदापीठ द्वारिका, परमपूज्य स्वामी विजयेन्द्र सरस्वती जी महाराज, जगद्गुरू शंकराचार्य, कांची कामकोटि पीठ, कांचीपुरम् ने लाइव शुभकामना संदेश दिए।