*कुएं जल की शुद्धता और कर्म!

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प्रस्तुति- कुमार राकेश
एक बार एक गाँव के कुवें के पानी से बदबू की समस्या ले कर गांववाले एक संत के पास पहुँचे। जब संत ने गाँव के लोगों को देखा तो पूछा कि “कैसे आना हुआ।”
तो लोगों ने कहा, “महात्मा जी गाँव भर में एक ही कुंआ है और कुएँ का पानी हम नहीं पी सकते हैं। क्योंकि “तीन कुत्ते लड़ते-लड़ते उसमें गिर गए थे, जो बाहर नहीं निकल पाने के कारण उसी में डूब कर मर गए। हम इस पानी को कैसे पियें, महात्मा जी?”

संत ने कहा, “एक काम करो, उसमें गंगाजल डलवाओ।” कुएँ में आठ दस बाल्टी गंगाजल छोड़ दिया गया फिर भी समस्या जस की तस रही। लोग फिर से संत के पास पहुँचे।

संत ने कहा, “भगवान की कथा कराओ।” लोगों ने कहा, “ठीक है।” कथा हुई फिर भी समस्या जस की तस रही।

लोग फिर संत के पास पहुँचे। इस बार संत ने कहा, “उसमें सुगंधित गुलाब डलवाओ।” सुगंधित द्रव्य डाला गया, नतीजा फिर वही।

अब संत खुद चलकर आए।
लोगों ने कहा, “महाराज वही हालात है, हमने सब करके देख लिया, गंगाजल डलवाया, कथा भी करवाई, प्रसाद भी बांटा, सुगंधित पुष्प और बहुत चीजें डालीं।”

अब संत ने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा कि, “*तुमने सब कुछ किया, लेकिन वे तीन कुत्ते जो इस कुँए में मरे पड़े थे उन्हें निकाला कि नहीं?

लोग बोले, “उसके लिए ना आपने कहा था, ना हमने निकाला। बाकी सब किया, वह तो वहीं के वहीं पड़े हैं।”

*यह सुनकर संत एक बार हैरान हो गए और फिर उन्होंने बड़े शांत भाव से उन्हें समझाया कि, “पानी के अंदर पड़े हुए तीनों मृत शवों को जब तक बाहर नहीं निकालेंगे, तब तक बाहरी उपायों का कोई भी प्रभाव नहीं होने वाला है। सबसे पहले भीतर पड़ी हुई, उस गंदगी को पानी से बाहर निकाले।”

ऐसी ही कथा हमारे जीवन की भी है। इस शरीर नामक गाँव के *अंतःकरण के कुएँ में, ये काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या नाम के कई जानवर लड़ते झगड़ते गिर गए हैं और दीमक की तरह मन की दीवारों से चिपक गए हैं।

*ये हमारे अन्तःकरण को अंदर से धीरे-धीरे सड़ा रहे हैं। अब सोचने की बात ये है कि हम उससे बाहर निकलने के लिए क्या कर रहे हैं ?

हम खुद को बेहतर बनाने के लिए हर पल बाहर से तो कई चीजें भीतर ले रहे हैं ,पर जो पहले से ही भीतर सड़ रहा है या जमा है उसे निकालने के लिए हम क्या कर रहे हैं।
एक बार इस पर विचार जरूर करे।

कितनी भी कथा सुन लो, भागवत करवा लो, मंदिर जाओ, सवामणि करवा लो, दान कर लो, परंतु यदि आपका अहंकार, ईगो, काम, क्रोध, लोभ आदि को बाहर नही निकालोगे, तो बाहरी शुद्धिकरण से कुछ फायदा नहीं होगा ।
प्रस्तुति -:कुमार राकेश

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