कॉमन सेंस का इस्तेमाल करें जज, सेफ खेलना करें बंद’, जमानत याचिका पर सुनवाई करने वाले जजों को सीजेआई की सलाह

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 29जुलाई। भारतीय मुख्य न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ ने रविवार को ट्रायल कोर्ट के जजों को लेकर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि कई महत्वपूर्ण आपराधिक मामलों में संदेह की स्थिति में अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीश जमानत देने में जोखिम उठाने से बचते हैं।

न्यायाधीशों के लिए सामान्य समझ और विवेक आवश्यक
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने जोर देकर कहा कि न्यायाधीशों को प्रत्येक मामले की बारीकियों पर गौर करते हुए सामान्य समझ और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा, “जिन लोगों को निचली अदालतों से जमानत मिलनी चाहिए, उन्हें वहां जमानत नहीं मिल रही है, जिसके कारण उन्हें उच्च न्यायालयों का रुख करना पड़ता है।”

जमानत में देरी और समस्याएं
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि जिन लोगों को उच्च न्यायालयों से जमानत मिलनी चाहिए, उन्हें भी कई बार जमानत नहीं मिलती और इस वजह से उन्हें उच्चतम न्यायालय का रुख करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह देरी उन लोगों की समस्या को और बढ़ा देती है जो मनमाने तरीके से गिरफ्तारियों का सामना कर रहे हैं।

सम्मेलन में सीजेआई का बयान
यह टिप्पणी सीजेआई ने ‘तुलनात्मक समानता और भेदभाव-रोधी बर्कले केंद्र के 11वें वार्षिक सम्मेलन’ के दौरान एक सवाल के जवाब में की थी। सवाल मनमाने ढंग से की गई गिरफ्तारियों के बारे में था, जिसमें यह कहा गया था कि हम ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां पहले कृत्य किया जाता है और फिर बाद में माफी मांगी जाती है। यह विशेष रूप से उन लोक प्राधिकारियों के लिए सच है जो राजनीतिक रूप से प्रेरित होकर कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, पत्रकारों और विपक्षी नेताओं को हिरासत में ले रहे हैं।

न्यायिक प्रक्रिया पर अविश्वास का प्रभाव
सीजेआई ने कहा कि इन कृत्यों को इस विश्वास के साथ किया जाता है कि न्याय प्रक्रिया धीमी गति से चलती है। उन्होंने बताया कि उच्चतम न्यायालय लगातार यह बताने की कोशिश कर रहा है कि इस समस्या का एक कारण संस्थाओं के प्रति अंतर्निहित अविश्वास भी है।

न्यायाधीशों के जोखिम न लेने की प्रवृत्ति
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “दुर्भाग्यवश, आज की समस्या यह है कि हम अधीनस्थ अदालतों के न्यायाधीशों द्वारा दी गई किसी भी राहत को संदेह की दृष्टि से देखते हैं। इसका मतलब यह है कि अधीनस्थ अदालत के न्यायाधीश महत्वपूर्ण मामलों में जमानत देकर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं।”

जमानत के मामलों को उच्चतम न्यायालय में न आने की सलाह
उन्होंने जोर देकर कहा कि न्यायाधीशों को प्रत्येक मामले की बारीकियों और सूक्ष्मताओं को देखना चाहिए, ताकि अधिकतर मामले उच्चतम न्यायालय तक न पहुंचे। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, “हम जमानत को प्राथमिकता इसलिए दे रहे हैं ताकि पूरे देश में यह संदेश जाए कि निर्णय लेने की प्रक्रिया के सबसे प्रारंभिक स्तर पर मौजूद न्यायिक अधिकारियों को यह विचार किए बिना अपना कर्तव्य निभाना चाहिए कि उन्हें कोई जोखिम नहीं है।”

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