“भारतीय राज्य से युद्ध” पर राहुल गांधी का बयान: राष्ट्र की आत्मा पर प्रहार

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,17 जनवरी।
कांग्रेस नेता और विपक्ष के नेता राहुल गांधी का यह कहना कि वह “भारतीय राज्य से युद्ध में हैं” न केवल अत्यंत गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि यह भारत की आत्मा पर एक गहरा प्रहार भी है। इस प्रकार की टिप्पणी से न केवल उनके द्वारा छह महीने पहले लिए गए शपथ का उल्लंघन होता है, बल्कि उस संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों का भी अपमान होता है, जिनकी रक्षा का उन्होंने वादा किया था।

लोकतंत्र और संविधान का अपमान
भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य है, जहां हर नागरिक को अपनी बात रखने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार का उपयोग जिम्मेदारी और संयम के साथ किया जाना चाहिए। विपक्ष का दायित्व सत्ता को जवाबदेह बनाना है, न कि राष्ट्र की गरिमा को ठेस पहुँचाना। राहुल गांधी का यह बयान न केवल लोकतंत्र की भावना के विपरीत है, बल्कि यह उनके संवैधानिक दायित्वों से भी पूरी तरह से विमुख है।

देश की सुरक्षा और बलिदानों का अपमान
राष्ट्र की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिकों और देशवासियों ने हमेशा अपने प्राणों की आहुति दी है ताकि भारत अखंड और सुरक्षित रहे। “भारतीय राज्य से युद्ध” जैसा बयान उन वीर जवानों के बलिदान का अपमान है, जिन्होंने अपने प्राण न्योछावर कर इस देश को सुरक्षित रखा है। यह उन करोड़ों नागरिकों की भावना का अपमान है, जो भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं।

राजनीति में मर्यादा का उल्लंघन
लोकतंत्र में असहमति और विरोध स्वाभाविक है, लेकिन किसी भी प्रकार का राजनीतिक संघर्ष राष्ट्र विरोधी बयानबाजी का बहाना नहीं बन सकता। राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ नेता से इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना भाषा की अपेक्षा नहीं की जाती। विपक्ष में रहकर सरकार की नीतियों की आलोचना करना उनका अधिकार है, लेकिन यह आलोचना रचनात्मक और सकारात्मक होनी चाहिए, न कि राष्ट्र की अस्मिता पर प्रहार करने वाली।

जिम्मेदार नेतृत्व की आवश्यकता
देश को आज ऐसे नेताओं की जरूरत है जो लोकतंत्र की गरिमा को बनाए रखते हुए रचनात्मक विचार प्रस्तुत करें। एक जिम्मेदार विपक्ष का कर्तव्य है कि वह जनहित में कार्य करे, राष्ट्र को मजबूत बनाए और किसी भी प्रकार की अवसरवादी राजनीति से दूर रहे।

निष्कर्ष
राहुल गांधी का “भारतीय राज्य से युद्ध” वाला बयान न केवल गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि यह देश की संविधान, लोकतंत्र और राष्ट्रवाद की भावना का भी अपमान है। राजनीति में असहमति हो सकती है, लेकिन राष्ट्र की अस्मिता और एकता से समझौता नहीं किया जा सकता। ऐसे में राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ नेता से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने शब्दों और विचारों में संयम रखें और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखें।

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