विकसित भारत के लिए वित्तीय स्थिरता जरूरी: हरिवंश

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,22 जनवरी।
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने पटना में आयोजित 85वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन के सत्र को संबोधित करते हुए देश की वित्तीय स्थिरता और विधायिका की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय स्थिरता अनिवार्य है और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के समान प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

वित्तीय स्थिरता और राजनीतिक सहमति का महत्व

हरिवंश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य का उल्लेख करते हुए कहा, “यह तभी संभव है जब सभी राज्य सामूहिक रूप से आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करें।” उन्होंने विधायिकाओं से आग्रह किया कि वे अपने राज्यों में बजट के कुशल प्रबंधन और कर्ज के बोझ को नियंत्रित करने पर विशेष ध्यान दें।

उन्होंने कहा, “यदि हमें आर्थिक महाशक्ति बनना है, तो लोकलुभावन खर्चों से बचने और वित्तीय अनुशासन के लिए एक नई राजनीतिक सहमति बनानी होगी।”

1991 का आर्थिक संकट और उससे सबक

हरिवंश ने 1991 में भारत के आर्थिक संकट का जिक्र करते हुए कहा कि यह संकट रातोंरात नहीं आया था। उन्होंने बताया कि उस समय के सत्तारूढ़ नेतृत्व द्वारा आवश्यक आर्थिक सुधारों को लागू करने में हुई देरी ने देश को कंगाली के कगार पर पहुंचा दिया था। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर द्वारा संकट से निपटने के लिए उठाए गए साहसिक कदमों को याद किया।

राज्यों की वित्तीय प्रतिबद्धताएं और चुनौती

हरिवंश ने भारतीय रिजर्व बैंक की उस चेतावनी का उल्लेख किया जिसमें राज्यों की बढ़ती वित्तीय प्रतिबद्धताओं और उनके संभावित कर्ज बोझ के खतरों के बारे में बताया गया था। उन्होंने विधायिकाओं में बजट आवंटन पर बहस की जरूरत पर जोर दिया और कहा, “अक्सर हम बजट में अधिक आवंटन की मांग सुनते हैं, लेकिन यह धन कहां से आएगा, इस पर चर्चा शायद ही होती है।”

लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती पर जोर

अपने संबोधन में उपसभापति ने सदन में विधायकों के आचरण और बहस की गुणवत्ता पर आत्मनिरीक्षण की जरूरत बताई। उन्होंने कहा, “आज सदनों में व्यवधान की प्रवृत्ति बढ़ रही है। हमें सम्मानपूर्वक असहमत होना सीखना होगा।” उन्होंने पुराने समय की विधायी परंपराओं का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रचंड बहुमत के बावजूद विपक्ष की भूमिका प्रभावी और गरिमामयी होती थी।

संवैधानिक मूल्यों को सशक्त करने में विधायिका की भूमिका

सम्मेलन की थीम ‘संवैधानिक मूल्यों को मजबूत करने में विधायी संस्थानों की भूमिका’ पर बोलते हुए हरिवंश ने कहा कि भारतीय संविधान लचीला और समय की आवश्यकताओं के अनुसार ढलने में सक्षम है। उन्होंने विधायिकाओं से संविधान को सतत विकासशील प्रक्रिया के रूप में देखने और भविष्य के कानूनों पर विचार करने का आह्वान किया।

सम्मेलन का समापन

यह दो दिवसीय सम्मेलन मंगलवार को बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की उपस्थिति में संपन्न हुआ। 1964 और 1982 के बाद यह तीसरा अवसर था जब बिहार ने अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन की मेजबानी की।

हरिवंश के इस संबोधन ने न केवल आर्थिक स्थिरता पर जागरूकता बढ़ाई बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने और विधायिकाओं की जिम्मेदारी पर भी गहराई से विचार करने का अवसर प्रदान किया।

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