जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला विवादों के घेरे में: एबीवीपी की तिरंगा रैली में स्कूली बच्चों को भेजने पर बवाल

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 30 जनवरी।
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के नेता उमर अब्दुल्ला एक नए विवाद में घिर गए हैं। उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) द्वारा आयोजित तिरंगा रैली में स्कूली बच्चों को भेजने का आदेश दिया, जिससे राजनीति गरमा गई है। विपक्षी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने इस पर कड़ा ऐतराज जताते हुए सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार शिक्षा व्यवस्था का उपयोग अपने प्रोपगैंडा को आगे बढ़ाने के लिए कर रही है। उन्होंने कहा, “स्कूली बच्चों को जबरदस्ती एबीवीपी जैसे संगठन के वैचारिक कार्यक्रम में भेजा जा रहा है। यह शिक्षा का दुरुपयोग है और बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है।”

आदिवासी संगठनों की भी नाराजगी

इस घटना के विरोध में केवल पीडीपी ही नहीं, बल्कि पुंछ में आदिवासी छात्रों के एक प्रमुख संगठन ने भी इस मामले की जांच की मांग की है। संगठन का कहना है कि बच्चों को किसी राजनीतिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए मजबूर करना न केवल अनुचित है बल्कि उनके अधिकारों का हनन भी है। आदिवासी संगठनों ने राज्य सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए इसे गैर-जिम्मेदाराना करार दिया है।

सरकार की सफाई

इस पूरे विवाद पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से सफाई दी गई है। सरकार ने कहा कि यह रैली राष्ट्रीय एकता और तिरंगे के सम्मान को बढ़ावा देने के लिए आयोजित की गई थी। बच्चों को इसमें भाग लेने के लिए प्रेरित करना केवल उनकी देशभक्ति को प्रोत्साहित करने का प्रयास था। सरकार ने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे इस मुद्दे का राजनीतिकरण कर रहे हैं।

राजनीतिक घमासान तेज

इस घटना ने राज्य में राजनीतिक माहौल को और गर्म कर दिया है। पीडीपी ने इसे बच्चों की आजादी का उल्लंघन बताया है, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस इसे देशभक्ति की भावना का पोषण करार दे रही है। विपक्ष और सत्ताधारी दल के बीच यह तीखी बहस आगामी चुनावों के मद्देनजर और तेज हो सकती है।

निष्कर्ष

स्कूली बच्चों को किसी भी राजनीतिक या वैचारिक कार्यक्रम में शामिल करना हमेशा से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। उमर अब्दुल्ला सरकार के इस कदम ने न केवल विपक्ष बल्कि नागरिक संगठनों के बीच भी आक्रोश पैदा कर दिया है। यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले में आगे क्या कदम उठाती है और क्या यह विवाद चुनावी राजनीति पर कोई बड़ा असर डाल सकता है।

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