नई दिल्ली,11 मार्च। महाभारत के एक प्रमुख पात्र, विदुर का जन्म महर्षि वेदव्यास और हस्तिनापुर के राजा विचित्रवीर्य की पतिव्रता रानियों अम्बिका और अम्बालिका की दासी से हुआ था। उन्हें धर्मराज यमराज का अवतार माना जाता है।
विदुर का पालन-पोषण भीष्म पितामह के संरक्षण में हुआ, जिन्होंने उन्हें और उनके भाइयों धृतराष्ट्र और पाण्डु को अस्तबल, युद्धकला, हाथी-घोड़े की सवारी, धनुष-बाण, गदा, तलवार, ढाल और राजनीति की शिक्षा दी। विदुर नीति के अनुसार, वे धर्म, नीति, राजनीति और समाजशास्त्र में निपुण थे।
पाण्डवों के पक्ष में उनकी निष्ठा जगजाहिर थी। द्रौपदी के चीरहरण के समय उन्होंने कौरवों के दरबार में उसका विरोध किया और पाण्डवों को न्याय दिलाने का प्रयास किया। धृतराष्ट्र को उन्होंने युद्ध के विनाशकारी परिणामों के प्रति सचेत किया, लेकिन पुत्र मोह के कारण वे नहीं माने। युद्ध के बाद, युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के समय, विदुर ने उन्हें राज्य संचालन की नीतियां और धर्म का पालन करने की सलाह दी।
विदुर नीति में जीवन के विभिन्न पहलुओं पर उपदेश दिए गए हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी शिक्षाएं सत्य, न्याय, धर्म, और नीति के पालन पर केंद्रित थीं। वे एक निष्कलंक चरित्र के धनी थे, जिन्होंने अपने जीवन में कभी भी अधर्म का साथ नहीं दिया।
विदुर का जीवन हमें यह सिखाता है कि धर्म, नीति और सत्य के मार्ग पर चलकर व्यक्ति समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है। उनकी शिक्षाएं आज भी हमें सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
महाभारत में विदुर का चरित्र एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक भूमिका निभाता है। वे धृतराष्ट्र और पांडु के सौतेले भाई थे, और हस्तिनापुर के प्रधानमंत्री के रूप में उनकी गिनती होती थी। विदुर का जन्म महर्षि वेद व्यास और दासी परिश्रमी के बीच हुआ था, जो रानियाँ अंबिका और अंबालिका की दासी थीं। इस प्रकार, वे पांडवों और कौरवों के पिता पक्ष के चाचा थे।
विदुर का पालन-पोषण भी भीष्म पितामह के संरक्षण में हुआ था, जिन्होंने उन्हें धनुर्विद्या, घुड़सवारी, गदा युद्ध, तलवारबाजी, हाथी संचालन और नीति विज्ञान में प्रशिक्षित किया। पांडु और धृतराष्ट्र की तुलना में विदुर नीति और धर्म के प्रति अधिक समर्पित थे। वे महाभारत के युद्ध के खिलाफ थे और उन्होंने धृतराष्ट्र को कई बार युद्ध से बचने की सलाह दी थी। विदुर ने दुर्योधन की नीतियों का विरोध किया और पांडवों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
महाभारत के भीष्म पर्व में विदुर नीति का संवाद मिलता है, जिसमें विदुर ने धृतराष्ट्र को जीवन, मृत्यु और धर्म के विषय में उपदेश दिए। यह संवाद आज भी नीति और धर्म के मार्गदर्शन के रूप में अध्ययन किया जाता है।
महाभारत में विदुर का चरित्र न केवल उनकी राजनीतिक और प्रशासनिक क्षमताओं के लिए जाना जाता है, बल्कि उनके नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों के लिए भी प्रसिद्ध है। उनकी नीतियां और उपदेश आज भी समाज और राजनीति में मार्गदर्शन का स्रोत हैं। विदुर की भूमिका महाभारत के घटनाक्रम में अत्यंत महत्वपूर्ण थी, और उनका योगदान भारतीय इतिहास और संस्कृति में सदैव स्मरणीय रहेगा।