समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,12 मार्च। भारत की संस्कृति और समाज का आधार वेदों में निहित है। वेदों के सिद्धांत न केवल धार्मिक विचारधारा को स्पष्ट करते हैं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के उद्देश्यों का निर्धारण भी करते हैं। भारतीय दर्शन में जीवन के चार प्रमुख स्तर—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—का विशेष महत्व है। ये चार स्तर मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं और इनकी संतुलित पूर्ति का प्रयास ही एक समृद्ध और सफल जीवन की ओर ले जाता है।
धर्म का अर्थ केवल धार्मिक आस्था या पूजा-पाठ तक ही सीमित नहीं है। यह जीवन का नैतिक और आध्यात्मिक लक्ष्य है, जो व्यक्ति को सत्य, न्याय और नैतिकता के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता है। प्राचीन भारत में धर्म और राज्य की कार्यप्रणाली का गहरा संबंध था। धर्म, न केवल व्यक्तिगत जीवन का मार्गदर्शन करता था, बल्कि यह शासन और राजतंत्र की नींव भी था। जब शासन व्यवस्था में धर्म का समावेश होता है, तो यह न केवल कानूनों के पालन को सुनिश्चित करता है, बल्कि समाज के प्रत्येक सदस्य को जीवन के उच्चतम उद्देश्य की प्राप्ति की ओर भी प्रेरित करता है।
राम राज्य: आदर्श शासन व्यवस्था राम राज्य, भगवान राम के समय का एक आदर्श शासन व्यवस्था, जिसे सुशासन का प्रतीक माना जाता है। इसे सत्य, न्याय और धर्म के आधार पर चलने वाली एक निष्कलंक सरकार के रूप में देखा जाता है। राम राज्य में सभी लोग सुखी, समृद्ध और न्यायपूर्ण जीवन जीते थे। यहां कानूनों का पालन सख्ती से किया जाता था, और हर किसी को उनके अधिकार मिलते थे।
राम राज्य, समाज के सभी वर्गों के लोगों का ख्याल रखा जाता था। राजा राम ने अपने सरकार में न केवल अपने दायित्वों का निर्वाह किया, बल्कि उन्होंने जनता के समृद्धि के लिए भी कई योजनाएं तैयार कीं। उनके शासन में कोई भी मनुष्य भूखा नहीं रहता था। यह न केवल धार्मिक सिद्धान्तों पर आधारित थी, بل सामाजिक न्याय और समानता का भी धर्म निभाता थी।
धर्म और राज्य का आपसी संबंधधर्म और शासन का संबंध हमेशा से एक जटिल विषय रहा है। प्राचीन भारत में, धर्म को शासन की बुनियाद माना गया। शासक का धर्म था कि वह अपने प्रजा के कल्याण के लिए काम करे और उन्हें न्याय दिलाए। इस संदर्भ में, धर्म का अर्थ केवल धार्मिक नियमों का पालन करना नहीं था, बल्कि यह सामजिक और नैतिक जिम्मेदारियों का भी निर्वहन करना था।राजनीतिक दृष्टिकोण में, धर्म का अनुसरण करने वाले शासक को ‘धर्मराज’ के रूप में देखा जाता था। ऐसे शासक अपने स्वार्थ के लिए ही नहीं, अपितु समाज के कल्याण में निर्णय लेते थे। इस तरह, धर्म और शासन का यह संबंध आज भी प्रासंगिक है।
सुशासन के सिद्धांत
सुशासन का आशय है, एक ऐसी शासन व्यवस्था जो सम्पूर्ण नागरिकों के कल्याण का ध्यान रखता हो। इसमें पारदर्शिता, जवाबदेही, और प्रभावशीलता की उपस्थिति होना होगा। राम राज्य के सिद्धांतों में सभी तत्व सुशासन के उपस्थित थे। इसके बावजूद यहाँ तक कि आज भी के, राम राज्य के सिद्धांतों को एक आदर्श शासन व्यवस्था की तरह देखा जा सकता है।आधुनिक भारत में जहां लोकतंत्र की नींव डाली गई है, वहां पर राम राज्य के सिद्धांतों की प्रासंगिकता बनी हुई है। यदि हम अपना शासन राम राज्य के सिद्धांतों के अनुसार चलाते हैं, तो हम एक ऐसी समाज की स्थापना कर सकते हैं, जहां सभी के अधिकारों का सम्मान हो और सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो।
वर्तमान संदर्भ
आज के समय में, भारत में शासन व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार, सामाजिक असमानता, और अन्याय जैसी समस्याएं हमारे समाज को प्रभावित कर रही हैं। अगर हम राम राज्य के सिद्धांतों को अपनाएं और धर्म को शासन का आधार बनाएं, तो हम एक समृद्ध और न्यायपूर्ण समाज की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं।इस आयाम में, हमें यह समझना होगा कि धर्म व्यक्तिगत आस्था का एक मामला नहीं है, लेकिन यह समाज के समग्र विकास और कल्याण का एक महत्वपूर्ण औजार है। धर्म का ठीक पालन करने पर ही हम एक आदर्श समाज की स्थापना कर सकते हैं, जिसमें समाज के हर सदस्य को उनके हिस्से में अधिकार मिलें और सबको खुशहाल जीवन बिताने का मौका मिले । यह स्पष्ट है कि धर्म और शासन का संबंध बहुत गहरा है और राम राज्य के सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं ।