डॉ कल्पना बोरा
नई दिल्ली,13 मार्च। हमारा भारत! हजारों देवी-देवताओं, त्योहारों, वेश-भूषा, व्यंजनों, भाषाओं, परंपराओं, रीति-रिवाजों, और जीवंत उत्सवों के अनुपम संगम का एक जीवंत इकाई “राष्ट्र”! हमारे पास नौ हजार वर्षों से भी अधिक प्राचीनतम सभ्यता की अमूल्य विरासत है, और हम गर्व से अपने प्राचीन ज्ञान-कोष, विज्ञान, कला और संस्कृति के अमूल्य रत्नों को हृदय में संजोए हैं, जो हमारे वेदों, पुराणों, उपनिषदों, भगवद गीता, शास्त्रों, और रामायण-महाभारत जैसे अलौकिक महाकाव्यों और सम्पूर्ण दर्शन में समाहित है।
हमारे पावन त्योहारों के पीछे का वैज्ञानिक आधार और हमारी वैभवशाली भारतीय संस्कृति एवं जड़ों में हमारी अटूट आस्था निहित है! एक सम्पूर्ण वर्ष के दौरान समय-निर्धारण, उत्सव मनाने की विधि, ग्रहण किया जाने वाला पौष्टिक भोजन – सभी के पीछे एक वैज्ञानिक आधार है ।
भारत का सनातन धर्म जीवन-पद्धति का एक मार्ग है, जो जीवन के प्रत्येक पल को एक आनंदोत्सव के रूप में जीना सिखाता है। कुछ तथाकथित “आधुनिक” और पश्चिमोन्मुखी लोग, जो विदेशी संस्कृति से मोहित हैं, मानते होंगे कि हमारी भारतीय संस्कृति का अनुगमन पिछड़ापन है, और ऐसी विकृत मानसिकता वाले माता-पिता की संतान भी उनके विचारों से विचलित हो जाती होगी । परंतु सत्य तो यह है कि या तो वे हमारी भारतीय संस्कृति, ज्ञान और मूल्य प्रणाली के पीछे छिपे गहन विज्ञान को समझने में असमर्थ हैं, अथवा संभवतः समझना ही नहीं चाहते! वे यह भी नहीं समझते कि जिस वृक्ष की जड़ें कमजोर होती हैं, वह पहली आँधी में ही धराशायी हो जाता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम कौन हैं, हमारी पहचान क्या है और किन कारणों से हम अनूठे एवं शक्तिशाली हैं – अपने त्योहारों को पारंपरिक रीति से मनाना इस गौरवशाली विरासत को संजोने का एक अमूल्य माध्यम है ।
प्रत्येक भारतीय त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान, नवीन एवं मनमोहक परिधानों, पारंपरिक और स्वादिष्ट पकवानों, गीतों, नृत्य और हर्षोल्लास तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है । हमारा लोक संगीत और नृत्य भारत के विभिन्न क्षेत्रों में त्योहारों के अवसर पर उत्पन्न हुआ है, चाहे वह बिहू (असम), मैबी नृत्य (मणिपुर), डांडिया (गुजरात), पदयानी (केरल) या लावणी (महाराष्ट्र) ही क्यों ना हो। त्योहारों का उल्लास हमें ऊर्जा, उत्साह और अनंत उमंग से परिपूर्ण कर, मन-प्राण में नवजीवन का संचार करता है, और हमें कठोर बाधाओं तथा विषम परिस्थितियों में भी अविचल गति से आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। यह हमारे एकरस जीवन में ताजगी और स्फूर्ति भर देता है, जो हमारे अस्तित्व के लिए प्राणवायु का काम करती है। वर्ष के विभिन्न ऋतुचक्रों में त्योहार मनाने का एक कारण यह भी है कि वे अर्थव्यवस्था को गतिशीलता और समृद्धि प्रदान करते हैं, क्योंकि लोग त्योहारों के अवसर पर हर्षोल्लास से खरीददारी करते हैं, और प्रत्येक पर्व पर विशेष वस्तुओं की माँग बढ़ती है। प्रत्येक त्योहार के दौरान ग्रहण किए जाने वाले व्यंजनों के पीछे भी गहन वैज्ञानिक आधार है। जैसे कि, मकर संक्रांति (जनवरी) पर, तिल और गुड़ से बने स्वादिष्ट व्यंजन इसलिए खाए जाते हैं, क्योंकि वे शीत ऋतु में आवश्यक ऊर्जा का प्रचुर स्रोत हैं। तिल अस्थियों को मजबूती प्रदान करता है और गुड़ पाचन-क्रिया को सुगम बनाता है तथा लौह तत्व का भी उत्तम स्रोत है।
अब रंगों का त्योहार होली आने वाला है, जो हिंदू पंचांग के फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर मनाया जाता है! इसे फाकुआ और डोल यात्रा (असम), डोल यात्रा और बसंत उत्सव (बंगाल), फागु पूर्णिमा (नेपाल) के नाम से भी जाना जाता है! यह भारत के सर्वाधिक प्रिय त्योहारों में से एक है। होली पर प्रियजन और मित्रगण एक दूसरे पर आनंद से रंग लगाते हैं और स्वादिष्ट पकवान खाते हैं। लोग अपने आपसी मन-मुटाव को भुलाकर एक साथ होली मनाते हैं, और यह भाईचारा और सौहार्द बढ़ाता है । अब तो विश्व के अन्य देशों में भी उल्लासपूर्वक होली मनाई जाती है ।
होली राधा और भगवान कृष्ण के मध्य अलौकिक प्रेम का प्रतीक है, क्योंकि श्याम राधा और सखियों को रंग लगाने में अत्यंत आनंदित हुआ करते थे। ब्रजमंडल में तो बसंत पंचमी से ही कान्हा होली खेलना शुरू कर देते थे, अतः ब्रज और बरसाने की होली विश्व प्रसिद्ध है, जिसे देखने और मनाने दूर दूर से लोग आते है। यहाँ डांडिया होली और लट्ठमार होली (होरी) भी खेली जाती है। होली बसंत ऋतु के मधुर आगमन का सूचक भी है। छोटी होली पर सामुदायिक स्थलों पर एक विशाल अलाव प्रज्वलित किया जाता है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा निहित है। पौराणिक तथ्यों के अनुसार हिरण्यकश्यपु एक महाबली परंतु दुराचारी राजा था जो अहंकार में स्वयं को परमेश्वर का अवतार मानता था और चाहता था कि सारी प्रजा केवल उसकी ही वंदना करे। उसके पुत्र प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति आरंभ कर दी, जिससे पिता राजा क्रोधित हो गया । अपने पुत्र से छुटकारा पाने के लिए हिरण्यकश्यपु ने अपनी बहन होलिका (जिसे अग्नि में ना जलने का वरदान मिला था) से कहा कि वह प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाकर अग्नि में प्रवेश करे। भगवान विष्णु के प्रति प्रह्लाद की भक्ति के फलस्वरूप वह अग्नि से सकुशल बच गया, जबकि होलिका भस्म हो गई। होलिका दहन की परंपरा इसी कथा पर आधारित है और यह धर्म की अधर्म पर विजय का प्रतीक है, अर्थात हिरण्यकश्यपु पर भगवान विष्णु (नरसिंह अवतार) की विजय । उपस्थित लोग होलिका अग्नि का परिक्रमण करते हैं – जो उनके शरीर को तापमय ऊर्जा प्रदान करती है और शरीर के हानिकारक जीवाणुओं का नाश करती है! ये कथाएँ गुयाना, त्रिनिदाद, सूरीनाम, टोबैगो और जमैका जैसे भारतीय मूल के कैरिबियाई समुदायों के होली उत्सव से भी जुड़ी हुई हैं ।
होलिका दहन से अगला दिन दुलहंडी के रूप में मनाया जाता है जब हर आँगन -गली इंद्रधनुषी रंगों से नहा उठती है । यह वह समयावधि है जब प्रकृति का परिवर्तन होता है, शीत ऋतु विदा होने को होती है, और मौसम सुखद और सुहावना हो जाता है। मनुष्य इस समय प्रायः आलस्य और सुस्ती से घिर जाते हैं। जब वे अपने घरों से बाहर निकलकर सूर्य की रोशनी में रंगों और जल से खेलते हैं, फागुन के मदमस्त गीत गाते हैं, तो उनके तन-मन में नवचेतना और स्फूर्ति का संचार होता है और वे आगामी ऋतु-परिवर्तन के लिए सशक्त बन जाते हैं। प्राचीन काल में, लोग होलिका दहन की पवित्र भस्म को चंदन, गुलाल, औषधीय पौधों के पत्तों के चूर्ण आदि से मिश्रित करके एक दूसरे पर मलकर होली का आनंद लेते थे, जो देह के लिए गुणकारी होता है। रंगों की छटा मानव-जीवन में उत्साह और उमंग की सरिता प्रवाहित करती है, और प्रत्येक रंग का मानसिक स्वास्थ्य पर विशिष्ट प्रभाव (क्रोमोथेरेपी) पड़ता है। लाल वर्ण ऊर्जा और स्फूर्ति, नीला वर्ण मन में शांति और शीतलता, पीत वर्ण बुद्धि और प्रज्ञा तथा हरित वर्ण समृद्धि और हरियाली का सूचक है । विभिन्न रंगों की अलग-अलग तरंग दैर्ध्य होती हैं, जिसके कारण वे हमारे मन-मस्तिष्क पर वे विविध प्रकार से प्रभाव डालते हैं। लोग गुजिया, दही भल्ले, मालपुआ, ठंडाई, कचौड़ी, पापड़ी-चाट, पूरन-पोली जैसे पारंपरिक व्यंजन बनाकर सगे-संबंधियों और मित्रों के साथ प्रेम-भाव से बाँटते और खाते हैं। सब मिलकर होली के गीत गाते हैं और नाचकर आनंदित होते हैं।
तो आओ, अपनी समृद्ध और गौरवशाली भारतीय परंपराओं और संस्कृति पर गर्व करते हुए हम सब मिलकर जीवन के इन शुद्ध, पावन और दिव्य रंगों के साथ होली का महापर्व मनाएं और आनंद, एकता, सकारात्मक ऊर्जा और अटूट आस्था के अगाध सागर में डुबकी लगाएँ ।