क्या फिर से रंग बदल सकते हैं नीतीश?

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त्रिदीब रमण
त्रिदीब रमण

तेरी सोहबत में ही तो मुझे इश्क का चस्का लगा है
इस कदर ख्यालों में रहा कि आज चांद मेरी देहरी पर टंगा है’

यह बात किंचित सुनने में अटपटी लग सकती है कि विपक्षी एका के नए पुरोधा बन कर उभरे बिहार के सीएम नीतीश कुमार क्या एक बार फिर से रंग बदल सकते हैं? क्योंकि ज्यों-ज्यों लालू परिवार पर केंद्रीय जांच एजेंसियों का शिकंजा कसता जा रहा है नीतीश इससे थोड़े अनमने होते जा रहे हैं। तेजस्वी यादव को बिहार में अपना राजनैतिक वारिस घोषित करने के बाद भी नीतीश की यह बदली भाव-भंगिमाएं राजद परिवार को भी रास नहीं आ रही हैं। सो, भाजपा वाले भी इन दिनों अतिरेक उत्साह की लहरों पर सवार हैं कि महाराष्ट्र के बाद अब बिहार में भी खेला होगा। पिछले दिनों राज्यसभा के उप सभापति और पीएम मोदी के करीबियों में शुमार होने वाले संपादक टर्न राजनेता हरिवंश नीतीश से मिलने पटना आ पहुंचे, कहते हैं वे अपने साथ भाजपा शीर्ष का कोई संदेशा भी लेकर आए थे। हालांकि अपनी पार्टी के मुखिया नीतीश से मिलने का टाइम हरिवंश काफी पहले से मांग रहे थे, पर नीतीश उन्हें मिलने का टाइम ही नहीं दे रहे थे। इन दिनों नीतीश जदयू के सांसदों व विधायकों से पटना में वन-टू-वन मिल रहे हैं सो, जदयू के राज्यसभा सांसद होने के नाते हरिवंश का नंबर भी लग गया। कहते हैं हरिवंश और नीतीश की बंद कमरे में कोई दो-ढाई घंटों तक मीटिंग चली, पुराने गिले-शिकवे दूर करने के उपक्रम हुए और भविष्य की राजनीति के ‘रोड मैप’ के बारे में खुल कर चर्चा हुई। हरिवंश की भाजपा शीर्ष से करीबी की बात जगजाहिर है, नए संसद भवन के उद्घाटन का जब ज्यादातर विपक्षी दलों ने बॉयकॉट कर रखा था, यहां तक कि हरिवंश की अपनी पार्टी जदयू ने भी इसके बहिष्कार का ऐलान कर रखा था, बावजूद इसके हरिवंश उस कार्यक्रम में शामिल हुए और पार्टी लाइन से इतर चलने के बावजूद भी नीतीश ने हरिवंश पर कोई अनुशासानात्मक कार्रवाई नहीं की, जिससे इस बात के संकेत मिलते हैं कि नीतीश भाजपा के साथ बातचीत का एक सिरा खुला रखना चाहते हैं। आने वाले दिनों में बेंगलुरू में विपक्षी एका का महाकुंभ आयोजित होना है और इस बात के चर्चे भी बहुत हैं कि नीतीश को विपक्षी एका के इस नए महामंच का संयोजक बनाया जा सकता है, ऐसे में नीतीश द्वारा दो नावों पर सवारी के क्या मंतव्य हो सकते हैं इसका राज तो भविष्य के गर्भ में छुपा है।

पीके चले भाजपा की ओर

अपने ‘जन सुराज मंच’ से एक नई राजनीति के उद्घोष का दावा करने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की क्या घर वापसी होने वाली है? कभी वे मोदी के ’ब्लू आईड ब्यॉय’ में शुमार होते थे, मोदी व भाजपा को डंके की चोट पर 2014 का लोकसभा चुनाव जितवाने में पीके की भी एक महती भूमिका बताई जाती है। केंद्र में जब भाजपा की सरकार बनी तो पीके की भाजपा के नंबर दो के साथ ठीक से पटरी नहीं बैठ पाई और वे नाराज़ होकर भाजपा विरोधियों की गोद में जाकर बैठ गए। पीके ने मोदी की धुर विरोधी ममता बनर्जी का चुनावी प्रबंधन का कार्य संभाला, वे अरविंद केजरीवाल, जगन मोहन रेड्डी, नीतीश से लेकर राहुल गांधी का काम देखने लगे। कहते हैं राहुल की भारत जोड़ो यात्रा का मूल आइडिया भी पीके का ही था। पर राहुल से भी उनकी ज्यादा नहीं बनी, ममता व नीतीश से भी उनकी कुट्टी हो गई। फिर पीके ने बिहार में अपनी जन सुराज यात्रा निकाली, वे बिहार का चेहरा-मोहरा बदलने का इरादा लेकर चले थे, पर उनकी इस यात्रा को राज्य में जब कोई खास रिस्पांस नहीं मिला तो फिर वे आशा भरी निगाहों से भाजपा की ओर तकने लगे। पीएम मोदी ने उनकी इच्छाओं का सम्मान करते हुए अपने नंबर दो अमित शाह से उन्हें मिलने को कहा। सूत्र बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों में पीके की भाजपा के चाणक्य से दो अहम मुलाकातें हो चुकी हैं, पुराने गिले-शिकवे भी दूर हुए हैं और अब यह कयास लगाए जा रहे हैं कि पीके को आने वाले दिनों में भाजपा संगठन में एक महती भूमिका मिलने वाली है और उन्हें बिहार में सक्रिय रहने को कहा जा सकता है।

क्या एकला चलेगी कांग्रेस

राहुल गांधी इन दिनों अपने एक नए अवतार में हैं, वे जान गए हैं कि सियासत भी किस कदर एक सांप-सीढ़ी का खेल है, सो उन्होंने अपने इमेज मेकओवर पर ही अपना सारा फोकस कर रखा है। राहुल यह भी जानते हैं कि 2024 का चुनाव उनके लिए ’करो या मरो’ का चुनाव है। सो, विपक्षी एका की तमाम कवायदों में राजदार रहने के बावजूद उन्होंने अपने पार्टी संगठन से कह दिया है कि ’हर राज्य में कांग्रेस की अपने दम पर चुनाव लड़ने की तैयारी होनी चाहिए।’ जैसे अभी राहुल ने पिछले दिनों एआईसीसी में महाराष्ट्र के नेताओं की मीटिंग ली और उनसे कहा कि ’कांग्रेस की राज्य की सभी 48 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी होनी चाहिए’, मीटिंग से बाहर निकल कर महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के मुखिया नाना पटोले ने अज्ञानतापूर्वक कह दिया कि ’कांग्रेस महाराष्ट्र की सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेगी।’ इस पर उद्धव ठाकरे व शरद पवार ने राहुल से फौरन आपत्ति जताई, तो पटोले को अपना बयान पर सफाई देनी पड़ी। राहुल इन दिनों राज्यवर कांग्रेस संगठन की मीटिंग ले रहे हैं, जिसमें उनके साथ मल्लिकार्जुन खड़गे, वेणुगोपाल और संबंधित राज्य के प्रदेश अध्यक्ष शामिल होते हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी अब तक ऐसी बैठकों में देखी नहीं गई है, कहते हैं राहुल व प्रियंका में इस बात को लेकर सहमति बनी है कि ’संगठन का सारा कामकाज राहुल और उनकी टीम देखेगी। और प्रियंका बतौर स्टार प्रचारक घूम-घूम कर कांग्रेस का देश भर में प्रचार करेंगी।’ कहते हैं प्रियंका की टीम के ऐसे नेताओं को भी जुबान पर लगाम देने को कहा गया है जो खुल्लम खुला पार्टी में राहुल विरोध की अलख जगाते रहे हैं।

क्यों आनंद में हैं मायावती

बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहते हैं अपना राजनैतिक उत्तराधिकारी तय कर लिया है। यह युवा नेता और कोई नहीं बल्कि मायावती के अपने भतीजे आकाश आनंद हैं। माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद बहिनजी बसपा की कमान आनंद को सौंप देंगी। अभी राज्यों के आसन्न चुनावों को देखते हुए बहिनजी ने राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलांगना विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी भी आनंद को सौंप दी है। इन्हें बसपा का नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया गया है। अगर बसपा के स्टार प्रचारकों की लिस्ट पर एक नज़र डाली जाए तो इस सूची में मायावती पहले नंबर पर हैं, सतीश चंद्र मिश्र दूसरे नंबर पर और आकाश आनंद तीसरे नंबर पर। आकाश अपनी बुआ मायावती के साथ 2019 में पहली बार किसी सार्वजनिक मंच पर नज़र आए थे। गुड़गांव के ‘पैथवे स्कूल’ से प्रारंभिक पढ़ाई के बाद आकाश आगे की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए थे, जहां 2013-16 के बीच उन्होंने लंदन की एक यूनिवर्सिटी से बीबीए की डिग्री हासिल की और 2016 ही उन्होंने अपनी एक कंपनी ‘डीजेटी ग्रुप’ बना ली और वे इस ग्रुप के सीईओ और एमडी बन गए। इसी ग्रुप का ‘हाईपर मार्किट डेरिका’ है। बहिनजी को भरोसा है कि आकाश को पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका देने से युवा वर्ग भी बड़े पैमाने पर बसपा से जुड़ेगा, बहिनजी की पार्टी भी आकाश आनंद को एक ’यूथ आईकॉन’ के तौर पर प्रोजेक्ट कर रही है। आकाश को भी अपना भाषण अंग्रेजी में देना पसंद है। अभी एक दक्षिण भारतीय राज्य में आकाश जब एक रैली को संबोधित करने पहुंचे तो उनका भाषण अंग्रेजी में होने के बावजूद उन्हें टेलीप्रोम्पटर की मदद लेनी पड़ी।

मणिपुर में मीडिया सेंटर

पिछले काफी समय से जब से मणिपुर में आग सुलग रही है, मजबूरन यहां प्रशासन को इंटरनेट की सेवाएं बंद करनी पड़ जाती हैं। सो, वहां काम कर रहे पत्रकारों को अपनी रिपोर्ट फाइल करने में खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। फिर पत्रकारों ने सामूहिक रूप से इस बात की शिकायत राज्य के मुख्यमंत्री बीरेंद्र सिंह से की। मुख्यमंत्री ने अपने डीपीआर यानी डायरेक्टर पब्लिक रिलेशंस से इस समस्या का हल निकालने को कहा। डीपीआर ने आनन-फानन में इंफाल में एक मीडिया सेंटर बनवा दिया जो इंटरनेट कनेक्षन से लैस था। सेंटर में इंटरनेट का अलग से नेटवर्क मुहैया कराया गया था। पत्रकारों के दर्द तकलीफ काफी हद तक दूर हो गए। इसके कुछ दिन बाद राज्य के शिक्षा मंत्री बसंता सिंह ’चीफ मिनिस्टर कॉलेज स्टूडेंट्स रीहेबिटेशन स्कीम 2023’ विषय पर एक प्रेस कांफ्रेंस करने आए, तो उन्होंने वहां मौजूद पत्रकारों से पूछा- ’क्या यह मीडिया सेंटर ठीक से काम कर रहा है?’ पत्रकारों ने कहा-’यहां बस एक टीवी की कमी है, वे न्यूज चैनल नहीं देख पा रहे।’ आनन-फानन में मंत्री महोदय ने मीडिया सेंटर को एक स्मार्ट टीवी डोनेट कर दिया, पत्रकार भी खुश हो गए।

और अंत में

यूपी के इस अधिकारी की 2007 से ही मुख्यमंत्री कार्यालय में धमक बनी हुई है, कई मुख्यमंत्री आए और चले गए, पर इस अधिकारी की कुर्सी हिली नहीं, उलटे उनकी ताकत और बढ़ती गई। एक दिन इन्हीं नौकरशाह को अपने मातहत अधिकारी को साथ लेकर सीएम ऑफिस में मीटिंग के लिए जाना था। वह मातहत अधिकारी योगी के एक सजातीय अफसर हैं और वे योगी के ’ब्यू आईड ब्यॉय’ में शुमार होते हैं। अब जब इस बड़े अधिकारी ने अपने मातहत अधिकारी को मोबाइल पर फोन किया तब उनके यह जूनियर अपने मुंहलगे पत्रकारों के साथ जमघट लगाए बैठे थे, सो मातहत ने अपने सीनियर का फोन काट दिया। सीनियर ने फिर दुबारा फोन लगा दिया तो इन्होंने फोन पत्रकारों को दिखाते हुए कहा-’इन्हें इतना भी समझ नहीं आ रहा है कि अगर कॉल डिस्कनेक्ट कर रहा हूं तो कोई तो इसकी वजह होगी?

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