मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के धरने से कांग्रेस पार्टी के साथ उनके गठबंधन के कयास को झटका लगा है। देश की सभी राजनीतिक पार्टियों ने केजरीवाल का समर्थन किया, वहीं कांग्रेस न केवल चुप रही बल्कि बीच-बीच में मुख्यमंत्री के धरने पर सवाल उठाती रही। कांग्रेस इन नौ दिनों के दौरान कभी भी ऐक्टिव मोड में नहीं दिखी। इस दौरान कभी भी कांग्रेस ने न तीव्र रूप से विरोध किया और न ही आप के करीब जाने की कोशिश की। वह बीच-बीच में विरोध करती रही। कभी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने तो कभी पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने भी आप के साथ जाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। किसी बड़े नेता ने केजरीवाल के इस धरने का समर्थन नहीं किया। अरविंद केजरीवाल के धरने को लेकर जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का पहली बार बयान आया तो उन्होंने भी इसे गलत बताया। हालांकि राहुल ने अपने ट्वीट में सीएम और पीएम दोनों पर निशाना बोला था। इससे कहीं न कहीं यह साबित होता है कि प्रदेश कांग्रेस के नेता अपनी बात राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंचाने में सफल रहे। राहुल ने भी अपने ट्वीट से यह जाहिर कर दिया कि गठबंधन की बात में दम नहीं है।
बीजेपी को केंद्र से हटाने के लिए कांग्रेस कोशिश कर रही है। तीसरे मोर्चे के गठन की बात हो रही है। उस पर आगे बढ़कर पहल की जा रही है। तीसरे मोर्चे की बात करने वाले लगभग सभी पार्टियों ने केजरीवाल का समर्थन किया। कांग्रेस ने दूरी और बढ़ा ली। इस मामले में कांग्रेस ने चुप रहने की बजाए लगातार विरोध कर यह संकेत दिया कि भविष्य में गठबंधन की बात नहीं बनने वाली है। अजय माकन ने सीएम के धरने पर कहा था कि यदि धरने करवाने हैं तो केजरीवाल नंबर वन हैं। भाषण करवाने में मोदी नंबर वन हैं। विकास के काम करवाने है तो कांग्रेस नंबर वन है।
2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर तीसरे गठबंधन की बात हो रही है। बीजेपी को दिल्ली में हराने के लिए आप और कांग्रेस में गठबंधन की बात भी उठी थी। प्रदेश कांग्रेस इससे नकारती रही है, क्योंकि उन्हें लगता है कि कांग्रेस का वोटर ही आप के पास गया है। अगर गठबंधन होता है तो उनका जनाधार और खत्म होने का डर है।