समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 21नवंबर। तम्बाकू ऐसी चीज है जिसके कारण कई तरह की गंभीर बीमारी होती है। देश में 99प्रतिशत लोग इसके नुकसान के बारें अच्छी तरह से जानते है फिर भी इसका सेवन आए दिन करते है। तम्बाकू का प्रयोग करने से कितने तरह के कैंसर आपको हो सकता है।
🚭 1.फेफड़ों में कैन्सर
रॉयल कॉलेज की रिपोर्ट बताती है कि तम्बाकू के कारण अनेकों को फेफड़ों की बीमारी होती है, विशेषकर कैन्सर। फेफड़ों की बीमारी के कारण अपने देश में बड़ी संख्या में मृत्यु होती है। अतः बिल्कुल बीड़ी न पीना ही इसका सबसे सुंदर इलाज है। ऐसी बीमारी डॉक्टरों के लिए भी एक चुनौती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि फेफड़ों के कैन्सर का मुख्य कारण तम्बाकू है। इसके अतिरिक्त पुरानी खाँसी भी बीडी पीने के कारण ही होती है। बड़ी आयु में खाँसी के कारण बड़ी संख्या में मृत्यु होती है और स्वास्थ्य नष्ट होता है। इससे ऐसे लोगों की जिन्दगी दुःखपूर्ण हो जाती है। दमा और हॉफ का मूल खाँसी है जिसके कारण मानव बड़ा परेशान होता है और कठिनाई में पड़ जाता है। क्षय (टी.बी.) के रोगी के लिए तो बीड़ी बड़ी हानिकारक है। अतः क्षय के रोगियों को तो बीड़ी कभी नहीं पीनी चाहिए। टीबी वाले रोगी दवा से अच्छे हो जाते हैं परंतु तम्बाकू-बीड़ी पीना चालू रखने के कारण उनके फेफड़े इतने अधिक कमजोर हो जाते हैं कि उन्हें फेफड़ों का कैन्सर होने का भय निरन्तर बना रहता है।
🚭 2. मुँह और गले का कैन्सर
मुँह का कैन्सर और गले का कैन्सर, ये भी बीडी पीनेवालों को ही अधिक मात्रा में होता है। जो व्यक्ति बीड़ी पीता है. वह फेफड़ों में पूरी मात्रा में हवा नहीं भर सकता। इससे उसे काम करने में हॉफ चढती है। हवा पूरी तरह न भरने से प्राणवायु पूरी नहीं मिल पाती और इससे रक्त पूरी तरह शुद्ध नहीं हो पाता।
स्कूल और कॉलेज में देखने में आता है कि होशियार विद्यार्थी तम्बाकू नहीं पीते । तम्बाकू पीने से सहनशक्ति कम हो जाती है और ऐसे व्यक्ति अधिकांशतः अर्धपागल (Whimsical Neurotic) होते हैं। तम्बाकू पीने से शरीर को कोई लाभ नहीं। तम्बाकू पीने से आयु कम होती है। तम्बाकू के कारण जितनी अकाल मृत्यु होती है उसका अनुमान लगाना कठिन है। तम्बाकू में हानिकारक जहरीली वस्तुएँ बहुत-सी हैं। उनमें ‘टार’ और ‘निकोटीन’ ये दो मुख्य हैं। २० मिनट में ही ये दोनों जहर रक्त में मिलकर शरीर को बहुत हानि पहुँचाते हैं। अग्रगण्य वैज्ञानिकों का यह मानना है कि धूम्रपान से कैन्सर होता है। प्रत्येक प्रकार के धूम्रपान में भयंकर जोखिम निहित होता है, जिसका अनुभव हमें तत्काल नहीं अपितु वर्षों बाद होता है। धूम्रपान की समानता गोलीभरी बंदूक से की जा सकती है, जिसका घोड़ा दबाते ही नुकसान होता है। धूम्रपान का समय घोड़ा दबाने का काम करता है।
फेफड़ों का कैन्सर दूर करने के लिए उच्च प्रकार की शल्यक्रिय की आवश्यकता पड़ती है। अस्पताल में लाये जानेवाले प्रत्येक रोगियों में से एक रोगी को ही शल्यक्रिया सफल हो पाती है, बाकी के अकाल मृत्यु के मुँह में जा पड़ते हैं। इस प्रकार कैन्सर दूर किये व्यक्तियों में से ८५ प्रतिशत केवल ५ वर्ष में और अधिकतर लोग दो में ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। बीसवी शताब्दी का अति उन्नत भी उन्हें बचाने में असफल रहता है। धूमपान नहीं करनेवाले को फेफ का कैन्सर होता ही नहीं।
लम्बाकू से निकलते धुएँ से बने कोलटार में लगभग २०० रासायनिक पदार्थ रहते हैं। उनमें से कितने ही पदार्थों से कैन्सर होने की सम्भावना है।
इंग्लैंड के डॉक्टर डाल और प्रो हिल की रिपोर्ट में यह सिद्ध किया गया है कि धूम्रपान ही फेफड़ों के कैन्सर होने का मुख्य कारण है। न्यूयार्क की विश्व विख्यात स्लोन केटरिंग कैन्सर इन्स्टीट्यूट के मुख्य नियामक डॉक्टर होइज भी धूमपान और कैन्सर के मध्य प्रगाढ़ सम्बंध मानते हैं। बम्बई के इंडियन कैन्सर इन्स्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ. खानोलकर भी बीड़ी पीने से कैन्सर होना मानते हैं।
इंग्लैंड और अमेरिका की सरकार ने सिगरेट बनानेवाली कम्पनियों के लिए नियम बनाये हैं कि वे अपनी सिगरेट से होनेवाली बीमारियों की जानकारी भी प्रजा को अवश्य दें।
भारत सरकार ने भी अब ऐसा नियम बनाया है परंतु व्यसन में अधे लोग यह चेतावनी देखकर भी नहीं रुकते और अपने तन और जीवन को नष्ट करते हैं।
🚭3. हार्ट-अटैक
तम्बाकू मात्र फेफड़ों की बीमारी ही लाती है ऐसा नहीं अपितु वह हृदयरोग भी लाती है। यह भी जानने में आया है कि बीड़ी पीनेवालों को हृदय की बीमारी अधिक मात्रा में होती है। इसीलिए तम्बाकू का उपयोग करनेवालों का अधिकांशतः ‘हार्ट फेल’ हो जाता है। इसी प्रकार नसों की बीमारियों के लिए भी बीड़ी ही उत्तरदायी है। बीड़ी भूख कम करती है, अतः पाचनशक्ति घट जाती है। परिणामस्वरूप शरीर कंकाल और बहुत ही दुर्बल होता जाता है, किन्तु इसके विपरीत यह भी जानने में आया है कि जो बीड़ी पीना छोड़ देते हैं उनका शरीर पुनः पुष्ट हो जाता है। जठरा और आँतों के घाव मिटने में तम्बाकू अवरोध उत्पन्न करती है. अतः घाव तत्काल ठीक नहीं हो पाता।
सामान्यतः हृदय की धड़कनों और उसकी हलचल का विचार नहीं आता परंतु कितने ही कारणों (जिनमें से एक कारण तम्बाकू भी है) से हृदय की धड़कनें बढ़ती प्रतीत होती हैं जिससे मनुष्य को घबराहट होती है।
हृदय नियमित रूप से संकुचित और प्रसारित होता है परंतु कितने ही रोगों में रोगी का हृदय अधिक संकुचित हो जाता है अथवा अधिक तेजी से चलने लगता है। ये दोनों रोग तम्बाकू के कारण भी हो सकते हैं जिनमें कभी-कभी तो ‘हार्ट फेल’ होने का भय रहता है। इसी प्रकार रक्तवाहिनी नसों की बीमारियाँ भी तम्बाकू के कारण ही होती हैं। रक्तवाहिनियों में रक्तभ्रमण की अनियमितता होती है जिसके कारण थोड़ा-सा काम करने से ही हाथ, पैर और सिर दुखने लगते हैं। रक्तवाहिनियों में सूजन होना, इस नामका दूसरा रोग (Blood clotting) भी होता है जिसमें नसों में लहू जम जाता है और प्रवाह मंद हो जाता है। इसके इलाज के लिए वह अंग ही कटवाना पड़ता है।
🚭 4. पेट के रोग
कितने ही लोग तर्क देते हैं कि वे बीड़ी न पियें तो पेट में गोला उठने लगता है।
पेट में बल पड़ना (आँतों में गाँठ लग जाना) आदि तम्बाकू के कारण होता है। इस रोग के रोगी को तम्बाकू अधिक पीने से रोग अधिकाधिक बढ़ता है। जठर की खराबी जिसके कारण अपच होती है, उस रोग का कारण हो सकता है। तम्बाकू के व्यसनी को जठर और आंतों के पुराने घाव होने की सम्भावना होती है।
🚭 5. अंधापन
एक अन्य ग्रंथ में लिखा है कि तम्बाखू चबाने से, तम्बाखू पीने से अथवा तम्बाकू के कारखाने में काम करने से कभी-कभी भी आ सकता है। आरम्भ में दृष्टि कमजोर होती जाती है जिसे चश्मा पहनने से भी सुधारा नहीं जा सकता। रोग को अंग्रेजी में (Red green colour blindness) कहते है। रोग दोनों आँखों में होता है। इसका सबसे अच्छा इलाज यही है कि तम्बाकू पिछे और न ही नसवार ले तम्बाकू के कारखाने में काम न करें। इसके अतिरिक्त और कोई इलाज नहीं है।
🚭 6.काग की सूजन
एक प्रचलित ग्रंथ कहता है कि गला और काम में सूजन होने के कितने ही कारण है, जिसमें से एक कारण तम्बाकू का धुआँ है। कई लोगों के मुँह में से लार टपकती है, उसका कारण भी तम्बाक हो सकता है।