सुप्रीम कोर्ट में वैवाहिक दुष्कर्म पर याचिकाएं: छूट की संवैधानिकता को चुनौती

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,18 सितम्बर। भारत की सुप्रीम कोर्ट में वैवाहिक दुष्कर्म के मामले को लेकर कुछ महत्वपूर्ण याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाकर्ताओं ने इस छूट की संवैधानिकता को चुनौती दी है, जो कि विवाहित महिलाओं के यौन शोषण के खिलाफ कानूनी संरक्षण प्रदान नहीं करती। इस मुद्दे ने एक नई बहस को जन्म दिया है, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

वैवाहिक दुष्कर्म की छूट: विवाद और चुनौती

भारतीय दंड संहिता के तहत, वैवाहिक दुष्कर्म को कानूनी अपराध के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। इसका अर्थ है कि एक पति अपनी पत्नी के खिलाफ यौन शोषण करने के लिए कानूनी रूप से उत्तरदायी नहीं है, यदि वह पत्नी वैवाहिक संबंध में है। इस छूट को लेकर कई सामाजिक कार्यकर्ता और कानूनी विशेषज्ञ इसे भेदभावपूर्ण मानते हैं, जो विशेष रूप से उन विवाहित महिलाओं के लिए एक गंभीर समस्या है, जो अपने पतियों द्वारा यौन शोषण का सामना करती हैं।

याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि इस छूट से विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है और यह संविधान द्वारा दिए गए समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों के खिलाफ है। उनका कहना है कि यह छूट महिलाओं के खिलाफ एक असमानता पैदा करती है और उनके यौन शोषण को कानूनी संरक्षण के बिना छोड़ देती है।

सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिकाओं में यह मांग की गई है कि वैवाहिक दुष्कर्म को एक कानूनी अपराध के रूप में मान्यता दी जाए और इसे भारतीय दंड संहिता में शामिल किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा है कि इस छूट को समाप्त करके, सरकार को महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करनी चाहिए और उन्हें कानूनी सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए।

इन याचिकाओं में अदालत से यह अपील की गई है कि वह इस छूट की संवैधानिकता की समीक्षा करे और यह सुनिश्चित करे कि महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन न हो। इसके साथ ही, याचिकाकर्ताओं ने सरकार से अनुरोध किया है कि वैवाहिक दुष्कर्म को कानूनी अपराध मानने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं, ताकि महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा मिल सके।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण और आगामी चरण

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और इसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। अदालत इस मुद्दे की संवैधानिकता और सामाजिक प्रभावों पर ध्यान केंद्रित कर रही है। इसके अतिरिक्त, यह देखना होगा कि अदालत किस प्रकार की समीक्षा करती है और इस मुद्दे पर क्या निर्णय देती है।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिकाएं वैवाहिक दुष्कर्म पर कानूनी और संवैधानिक बहस को नई दिशा दे रही हैं। इस मामले में अदालत के निर्णय से न केवल कानूनी प्रणाली पर प्रभाव पड़ेगा, बल्कि यह समाज में महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा की दिशा में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। इस मुद्दे पर अदालत का निर्णय महिला अधिकारों और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, जो आने वाले समय में न्यायिक और सामाजिक दृष्टिकोण को प्रभावित करेगा।

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