संस्कृति : लोकमंथन (9)- भारत में आस्था और विज्ञान की लोक परम्पराएं -2

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पार्थसारथि थपलियाल।
( हाल ही में 21 सितंबर से 24 सितंबर 2022 तक श्रीमंता शंकरदेव कलाक्षेत्र गोहाटी में प्रज्ञा प्रवाह द्वारा तीसरे लोकमंथन का आयोजन किया गया। इस दौरान बहुत महत्वपूर्ण सांस्कृतिक गतिविधियां आयोजित की गई। प्रस्तुत है लोकमंथन की उल्लेखनीय गतिविधियों पर सारपूर्ण श्रृंखलाबद्ध प्रस्तुति)

डॉ. नीरजा गुप्ता सांची बौद्ध विश्वविद्यालय की कुलपति हैं। 21 पुस्तकें लिख चुकी है। गृह मंत्रालय में जम्मू और काश्मीर से अनुच्छेद 370 के निरसन से संबंधी कमेटी में प्रमुख निदेशक रह चुकी हैं। 16 से अधिक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों से जुड़ी हैं।

डॉ. नीरजा गुप्ता ने Faith शब्द को आस्था के रूप में व्यक्त किया। उनका कहना था कि सनातन संस्कृति में आस्था और विज्ञान अलग अलग नही हैं। पाश्चात्य जगत इन्हें अलग अलग देखता है। पश्चिमी दुनिया मे रिलीजन और साइंस में संघर्ष रहा है। अगर वामपंथियों की बात करें तो लगता है जैसे यह Head (सिर) और Heart (दिल) का संघर्ष रहा है। सेकुलरियों की दृष्टि में यह Truth (सत्य) और Imagine (कल्पना) जैसे लगता है।
भगवान आस्था है या विज्ञान? त्यौहार परंपरा है या विज्ञान? यदि ब्रह्म आस्था है तो ब्रह्मांड विज्ञान कैसे हो सकता है? एक वैज्ञानिक अपने प्रयोग का सत्य जानने के लिए विभिन्न प्रयोग करता है। किसी भी प्रयोग से उसे परिणाम मिल जाता है तो वह क्रिया विज्ञान बन जाती है। भगवान रामचंद्र, गौतमबुद्ध, महावीर स्वामी ये सभी राजपुत्र थे। तीनों ने अपनी अपनी तपस्या और आध्यात्मिक चर्या से सत्य की खोज की। क्या तपस्या से निकला ज्ञान विज्ञान नही है? ग्रामीण जन जीवन में लोग अपने अपने अनुभव के ज्ञान से जीवन जीते हैं। कोई शहरी आदमी जब उन ग्रामीणों के मध्य पहुंचता है तो उन्हें अनपढ़ और मूर्ख समझता है। वह आदमी अपनी आधुनिक शहरी संस्कृति के साथ तुलना करता है। जबकि ग्रामीणों के पास उस विधा में जीने का उत्तम ज्ञान होता है।

डॉ. नीरजा गुप्ता ने अभिनव गुप्त के एक कथन को उद्धृत करते हुए कहा- एक दर्पण में प्रतिबिंब दिखाई देता है। क्या बिना प्रकाश की उपस्थिति के प्रतिबिंब दिखाई देगा? पश्चिम के लोग केवल प्रत्यक्ष को ही प्रमाण मानते हैं। हमारे शास्त्रों में कई तरह के प्रमाण उलब्ध हैं। न्याय दर्शन, सांख्य दर्शन, वैशेषिक दर्शन और तर्क शास्त्र में इनकी विस्तृत विवेचना की गई है। प्रत्यक्ष प्रमाण, अनुमान प्रमाण, शब्द प्रमाण, शास्त्र प्रमाण, सत्य प्रमाण, मर्यादा प्रमाण, इयत्ता प्रमाण, उपमान प्रमाण, आगम प्रमाण आदि आदि। हम पाश्चात्य खोजों को ही विज्ञान क्यों मानते हैं, अपने ज्ञान को मान क्यों नही देते?

डॉ.नीरजा गुप्ता ने नवरात्रि को लेकर एक नई दृष्टि दी। उन्होंने बताया हमारे देश में नवरात्रि एक साल में चार बार मनाई जाती है। अश्वनि माह में शारदीय नवरात्रि और चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से चैत्र नवरात्रि। दो गुप्त नवरात्रि भी होती हैं। गुप्त नवरात्रि आषाढ़ और पौष माह में आती हैं। मुख्यतः अश्वनि माह और चैत्र माह की नवरात्रियों का संबंध हमारी शीत कालीन और ग्रीष्म कालीन रबी और खरीफ की फसलों के लिए वैज्ञानिक प्रयोग हैं। नवरात्रि में कलश स्थापना के समय बोए गए जौ (जवारों) से आगामी कृषि के अच्छी या खराब होने का ज्ञान हो जाता था। जिन्हें नवरात्रि के बाद मंदिर में दे दिया जाता था। राजा इसी आधार पर टैक्स का निर्धारण करता था। डॉ. नीरजा गुप्ता ने रसोई घर के रंग, रस और पात्र शब्दों को भरत मुनि के नाट्य शास्त्र से जोड़ते हुए इनकी वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत कर दी।

वास्तव में भारत में आस्था और विज्ञान अलग अलग नही हैं। हमारी दृष्टि को पाश्चात्य बना दिया गया है इसलिए हम विज्ञान को क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में देखना चाहते हैं जो भारतीय दृष्टिकोण नही है।

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